कितने सारे नक़ाब पहन रखे है मैने
चाहा की फ़ेंक दूं सब उतारके कहीं तो
जब करने लगी ऐसा तो जाना
एक एक नक़ाब मेरा एक एक रुप था
कितने सारे चेहरे लेकर घूमती हूं मै
हर एक का अपना अपना रंग था
उन सारे नक़ाबों के तले छुपा
आखिर वह एक सामने आया,
भूला-सा, बिसरा-सा था वह
खुद से कई तरह से अलग पाया
वो जो कभी मेरी पहचान हुआ करता था
आज मेरे लिये अजनबी बन गया है
या फिर किसी नये रंग-रूप के खातीर
मैने ही किसी और हस्ती से रिश्ता सजाया है
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चढा दिये फिर सारे एक एक कर के
अब इसी चेहरे की आदत सी हो गयी है।
label "uggach" asla, tari uggach lihilyasarkha vatat nahiye... It's really good, and pretty thought-provoking.
ReplyDelete@Akanksha: Thanks :) aga te lable hi 'uggach'ach lavalay :p
ReplyDeletenice composition dear..
ReplyDeleteprobably this poet in you is one of those hidden faces u mentioned there :)
keep writing !!!
aprateem :)
ReplyDelete@ Deep: thanks yaar. :)
ReplyDelete@ Mukta: thanku thanku :)
kya baat! bahut badhiyaa! kisi anubhav ya anubhavon se utpan vichaar aur samvedana inn panktiyon mein mehsoos hoti hain aur ek naye pehel ki aur le jaati hai..
ReplyDeleteaur likhiye..
@vinay: are mala tuzi commet kalayala 3-4 velela vachayala lagli :D
ReplyDeleteBTW thanks a lot :)
aprateem. (sorry mukta, pan malahi hach reply suchla). I think this can be title kavita for 'Meghana in the Mirror'.
ReplyDelete@Vinay - pehel mhanje kay re?
@ Shantanu: thanks :-) are 'pahel' mhanje suruvat.
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