Saturday, May 22, 2010

लफ़्ज आजकल मुझसे कुछ रूठ गए हैं..
न जाने कहाँ जाके छुप गए हैं..

तनहाई में भी राह देखती रहती हूँ उनकी..

मगर वह ज़ालिम कुछ ऐसे हैं की
यूं लुक्काछुपी में मज़े ले रहे हैं..

ए लफ़्जों, मुझे ऐसे न सताया करो..
मेरी मर्जी हो न हो
रोज मेरी गली आया करो..

ज़िन्दगी का रास्ता तो अकेले चलना ही पड़ेगा मुझे..
कम से कम तुम्हारे साथ का झूठा ही सही
लालच दिखाया करो...

6 comments:

  1. kyaa baat !
    chal lawali ahes ka ya gazals na?

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  2. lai bhari.
    @ Vishal - exactly, mazya hi manat hach prashna ala hota.
    @ meghana - chaal awaiting

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  3. @ Vishal & Shantanu: thnx!! pan chal vagaire lavana aaplyala nahi jamat re baba...
    aani he random shabd chalit bastil asa vatat nahi :p

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  4. @ Vishal & Shantanu:tila asa nahi sangaych ki 'chal ' lav ,kasa mhanyche te me sangte bagha..
    @Meghana:'he random shabd' ka ? mang tyanna distribution fit kar barr..

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  5. @ meera : swarache distribution fit karayacha mi prayatna kela tar tyat 'noise' ch jast asel...

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