लफ़्ज आजकल मुझसे कुछ रूठ गए हैं..
न जाने कहाँ जाके छुप गए हैं..
तनहाई में भी राह देखती रहती हूँ उनकी..
मगर वह ज़ालिम कुछ ऐसे हैं की
यूं लुक्काछुपी में मज़े ले रहे हैं..
ए लफ़्जों, मुझे ऐसे न सताया करो..
मेरी मर्जी हो न हो
रोज मेरी गली आया करो..
ज़िन्दगी का रास्ता तो अकेले चलना ही पड़ेगा मुझे..
कम से कम तुम्हारे साथ का झूठा ही सही
लालच दिखाया करो...
kyaa baat !
ReplyDeletechal lawali ahes ka ya gazals na?
lai bhari.
ReplyDelete@ Vishal - exactly, mazya hi manat hach prashna ala hota.
@ meghana - chaal awaiting
@ Vishal & Shantanu: thnx!! pan chal vagaire lavana aaplyala nahi jamat re baba...
ReplyDeleteaani he random shabd chalit bastil asa vatat nahi :p
@ Vishal & Shantanu:tila asa nahi sangaych ki 'chal ' lav ,kasa mhanyche te me sangte bagha..
ReplyDelete@Meghana:'he random shabd' ka ? mang tyanna distribution fit kar barr..
@ meera : swarache distribution fit karayacha mi prayatna kela tar tyat 'noise' ch jast asel...
ReplyDeleteKhupach chaan!
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